Friday, September 8, 2023

JAGRAN JUNCTION


फिल्म समीक्षा "जवान" | ✍ आशुतोष गुप्ता (जागरण जंक्शन)


सम­झने वाले तो समझेंगे ही... न समझने वाले भी समझ जायेंगे


सिस्टम के भ्रष्टाचार पर ‘जवान’ का प्रहार


राजनीति, पुलिस प्रशासन और भारतीय सेना से लेकर देश के किसानों तक की स्थिति को फिल्म में प्रमुखता से दर्शाया गया है.


लड़कर न्याय हासिल करने की सीख देती है फिल्म जवान


स्टारकास्ट :

शाहरुख खान , दीपिका पादुकोण , नयनतारा , प्रियामणि , विजय सेतुपति और सान्या मल्होत्रा


निर्माता :

गौरी खान, रेड चिल्लीज एंटरटेन्मेंट


निर्देशक / लेखक 

एटली और एस रामानागिरिवासन


गीत:  राजा कुमारी 

संगीत:  अनिरूद्ध रविचंदेर


देश के पुर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने आजादी के बाद एक नारा दिया था ‘जय जवान, जय किसान’। फिल्म "जवान" के लिए यह नारा बिल्कुल सटीक बैठता है। देश के जवान और किसान वास्तव में देश के रीढ़ की वो हड्डी हैं जिनके दम पर देश का ­झंडा सदा ऊँचा रहता है। लेकिन अफसोस आम जनता के साथ ही देश का जवान और किसान भी सिस्टम के भ्रष्टाचार और चंद लोगों के लालच की भेंट चढ़ता जा रहा है। जहां एक तरफ किसी का करोड़ो रूपया बैंक लोन माफ कर दिया जाता है वहीं दूसरी तरफ महज कुछ हजार के लिए किसान आत्महत्या कर लेता है..


फिल्म कथानक 


जेल में एक बच्चे का जन्म होता है जिसकी माँ को फांसाी की सजा हुई रहती है और बाप जो देश की सेना का जवान है उसको देशद्रोही का कलंक देकर एक गुमनाम मौत मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। कानून के मुताबिक बच्चे के पाँच साल का होने के बाद उसकी माँ को फांसी हो जाती है तब बच्चे को एक  नई माँ मिलती है और जेल में ही उसकी परवशि होती है।


अब यही बच्चा बड़ा होकर बनता है जेलर आजाद (शाहरूख खान) जिसे अपने बाप विक्रम राठौर (दोनों भूमिकाएं शाहरूरख खान ने ही निभाई है) पर लगे देशद्रोह के कलंक को मिटना है। 


उधर हेलीकॉप्टर से फेके जाने के बाद विक्रम राठौड़ एक कबीले में जा गिरता है। किसी तरह उसकी जान तो बच जाती है लेकिन वह अपनी यादाश्त पूरी तरह से खो चुका होता है। यादाश्त जाने के बावजूद भी उसे गलत और सही का फर्क बखूबी पता रहता है। कबीले वालों के साथ ही उसकी जिंदगी आगे बढ़ने लगती है।



इधर सिस्टम में व्याप्त भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुंच चुका होता है। एक उद्योगपति का 40 हजार करोड़ का बैंक लोन माफ कर दिया जाता है लेकिन एक किसान को 40 हजार के लिए इतना प्रताड़ित किया जाता है कि उसे आत्महत्या करना पड़ता है।


फिल्म के कहानी की शुरूआत पर गौर करेें तो सेना का जवान बने विक्रम राठौर को पता चलता है कि जंग में जाने वाले जवानों का मोर्चे के समय चलायी जाने वाली अत्याधुनिक मशीनगन काम ही नहीं करती। इसके पहले भी जवानों की बंदूकें समय पर काम नहीं करती और सैकड़ों जवानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। जवान विक्रम राठौड़ के कहने पर बंदुक बनाने वाली कंपनी के मालिक काली (विजय सेतूपत्ति) के खिलाफ जाँच बैठायी जाती है और उसकी सारी डील कैंसिल कर दी जाती है। डील कैंसिल होने के कारण काली विक्रम राठौड़ को धोखे से बंदी बनाकर हेलीकॉप्टर से नीचे फेंक देता है और उसकी पत्नी ऐश्वर्या राठौड़ (दीपीका पादुकोड़) को हत्या के केस में फांसी की सजा हो जाती है। 



फांसी देते समय ऐश्वर्या के प्रेगनेंट होने का पता चलता है तब उसकी फांसी पांच साल के लिए रूक जाती है। बाद में वह जेल में ही अपने बच्चे को जन्म देती है और पांच साल बाद अपने बच्चे को उसके बांप के माथे पर लगे देशद्रोह के कलंक  को मिटाने का वचन लेकर फांसी चढ़ जाती है।


अब शुरू होता है जवान की कहानी का दूसरा चैप्टर जो कि फिल्म के शुरूआत में ही दिखाया गया है। जेलर आजाद अपना हुलिया बदलकर अपने छः खुफिया महिला सहयोगियों के साथ मुंबई मेट्रो ट्रेन को हाइजेक कर लेता है और सरकार के सामने शर्त रखता है कि जो 40 हजार करोड़ के लोन माफ किये गये हैं वो उसके खाते में ट्रासफर किये जांय। यह पैसे वह उन सारे किसानों के आकाउंट में ट्रांसफर कर दिये जाते हैं जिनका बैंक में लोन है। अचानक लोन माफी का मैसेज का देखकर किसानों के चेहरे खिल जाते है। मेट्रो के यात्री जो पहले डरे होते हैं लेकिन इस नेक काम से वे भी आजाद के फैन हो जाते हैं। यहां का एक्शन और फिल्मी ड्रामा देखकर  आप तालिया पीटने और सीटी बजाने के लिए मजबूर हो जायेंगे और थयेटर में बैठे दर्शक ऐसा करते भी हैं।


इसी तरह एक नये रूप में जेलर आजाद सिस्टम के भ्रष्टाचार पर चोट करता रहता है और बदले में गरीब जनता की मदद हो सके ऐसी सरकार से मांग करता है। जैसे कि सरकारी अस्पतालों में अत्याधुनिक सुविधायें उपलब्ध कराना, जानलेवा फैक्ट्रियों और कारखानों को बंद कराना जिससे आम जनता को राहत मिले। अपने नेक कार्यों से वह जनता का हीरो बन जाता है। कोई भी उसके खिलाफ मुह नहीं खोलता।


इसी बीच उसकी मुलाकात होती है नर्मदा (नयनतारा) से जो एक तेज तर्रार पुलिस अफसर है और शहर में आयेदिन हो रहे क्राइम की जांच के लिए अप्पॉइंट की जाती है। नयनतारा एक सिंगल मदर है। वह अपनी बेटी को बाप का प्यार देने के लिए शादी करना चाहती है। भाग्यवश उसकी शादी जेलर आजाद से ही हो जाती है। वह आजाद के दूसरे कारनामे से अनजान रहती है लेकिन बाद में उसे भी पता चल जाता है और वह भी आजाद की लड़ाई में शामिल हो जाती है। 


आगे की कहानी जानने के लिए आपको थियेटर जाना होगा। हमारा दावा है कि फिल्म आपको कहीं से भी निराश नहीं करेगी। आपके पैसे तो वसूल होंगे ही एक अच्छा संदेश भी आपको मिलेगा।


जागरण जंक्शन रेटिंग : ****/5  (4 स्टार)


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